सोमवार, 31 मार्च 2008

७८.खामोशियाँ भी तेरी !


खामोशियाँ भी तेरी दिल को है गवारा अज़ीज--जानशीन
के किस्सा-- मोहोब्बत तेरी आँखों से बयान हो जाता
दिल--नादान को लगती है चोट,वो रोता भी है कभी कभी
समझाना उसे आसान होता,गर लफ़्ज़ों का मरहम मिल पाता |

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