सोमवार, 31 मार्च 2008

६८.रात क्या ढली !


रात क्या ढली सीतारे चले गए ,
कोई और क्या मीला आप हमे भुलाते चले गए ,
दोस्ती की बाजी जीत तो हम भी सकते थे ,
पर आप की खुशी के लीये हारते चले गए !!

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