सोमवार, 31 मार्च 2008

४१. दिल -ऐ -आशीकी !

दिल -ऐ -आशीकी की तमन्ना हम जिनसे करते थे ,

जुदाई अब हम उनकी सहते है ,

वक्त नही उन्हें हमसे कुछ बातें करने की ,

ये ही सोचकर अब हम हर वक्त खामोश रहते है !!

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