सोमवार, 31 मार्च 2008

५५.बेवफ़ाई के !








बेवफ़ाई के किस्से सुनाऊँ किसे . बात घर की है अपनी बताऊँ किसे.

कौन दुनियाँ मैं अपना तलबगार है, फोन किसको करूँ मैं बुलाऊँ किसे.

दूध का मैं जला छाछ से भी डरूं, प्यास अपनी जहां में दिखाऊँ किसे .

रूठने और मनाने के मौसम गये, किससे रूठूं मैं अब, मैं मनाऊँ किसे.

शाख पर मेरी फल आगये इन दिनों, खुद ही झुक जाता हूं अब झुकाऊँ किसे .

उसको महलों में रहने की आदत पड़ी, झोपड़ी अपनी अब मैं दिखाऊँ किसे .

आँसुओं की सौगात मुझको मिली, खुद ही रो लेता हूं अब रुलाऊँ किसे .

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