सोमवार, 31 मार्च 2008

४3. ये दर्द अब !

ये दर्द अब ना रहा तेरी जुदाई का ,

मिल गया मुझे सिला मेरी तन्हाई का ,

तनहा छोड़कर मेरा ज़िक्र महफिलों में होता रहा ,

ये सब मुझपर करम है उनकी बेवफाई का !!

कोई टिप्पणी नहीं: