सोमवार, 31 मार्च 2008

४६.दो दिलो की !












दो दिलो की दास्ताँ कहाँ तुम्हे कुबूल थी ,

वो कसमे वो वादे तुम्हारे लीये फिजूल थे ,


कोई आस नहीं बाकी हमारे दिल के लीये थी ,

मैंने तुम्हे चाह क्या ये भूल थी !!

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