गुरुवार, 1 जनवरी 2009

९८.रहो जमीं पे मगर


रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखो तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
मिले तो ऐसे कि कोई भूल पाये तुम्हें
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो
अक्लमंदों में रहो तो अक्लमंदों की तरह
और नादानों में रहना हो रहो नादान से
वो जो कल था और अपना भी नहीं था दोस्तों
आज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से!!!!

1 टिप्पणी:

KRISHAN SINGH ने कहा…

BANDHU

SHUBH KAMNAE

SUNDER PRAYAS KE LIYE